उत्तराखंड को कई मुख्यमंत्री और देश को अनेक महान हस्तियां देने वाला मंडल मुख्यालय पौड़ी आज खुद विकास की राह तक रहा है। शहर की उपेक्षा का उदाहरण बुआखाल क्षेत्र में बना जर्जर प्रवेश द्वार और फटे हुए शाइन बोर्ड हैं, जो यहां के जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता की गवाही देते हैं। जहां एक ओर श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र के पाबौ और खिर्सू में बनाए गए भव्य प्रवेश द्वार और सुव्यवस्थित साइन बोर्ड पर्यटकों और स्थानीय लोगों को आकर्षित कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पौड़ी का स्वागत द्वार बदहाल स्थिति में होने के कारण उपेक्षा का प्रतीक बन गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि एक समय प्रदेश की राजनीति में केंद्र रहे पौड़ी को अब योजनाओं और विकास कार्यों से लगातार पीछे किया जा रहा है। “प्रवेश द्वार किसी भी शहर की पहली झलक होते हैं, लेकिन यहां की स्थिति देखकर लगता है मानो यह शहर अपनी पहचान खो रहा हो,” एक निवासी ने कहा। नागरिकों ने मांग की है कि पौड़ी के मूलभूत ढांचे और सौंदर्यीकरण की ओर सरकार व जनप्रतिनिधि शीघ्र ध्यान दें, ताकि यह ऐतिहासिक नगर पुनः गौरव प्राप्त कर सके। जहां एक ओर सरकार और जनप्रतिनिधि पौड़ी को पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने की बात करते नहीं थकते, वहीं ज़मीनी हकीकत इन दावों को पूरी तरह झुठलाती नजर आती है। बुआखाल में बना जर्जर स्वागत द्वार, टूटी सड़कें, फटे शाइन बोर्ड और बुनियादी सुविधाओं की कमी इस बात का प्रमाण हैं कि विकास केवल कागजों तक ही सीमित है। पौड़ी, जिसे कभी प्रशासनिक और शैक्षिक राजधानी माना जाता था, अब विकास की दौड़ में पिछड़ता जा रहा है।
